हल्द्वानी। उत्तराखंड के विभिन्न सरकारी विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में इस सत्र में छात्र संघ चुनाव न कराए जाने के निर्णय ने एक बार फिर से राजनीतिक चर्चाओं को जन्म दे दिया है। परिवर्तनकामी छात्र संगठन (पछास) के महासचिव महेश ने एक प्रेस बयान में कहा कि यह फैसला सरकार की लोकतांत्रिक मूल्यों को खत्म करने की कोशिश का नतीजा है। यह निर्णय उत्तराखंड उच्च न्यायालय नैनीताल द्वारा एक जनहित याचिका पर लिया गया, जिसमें लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों के आधार पर 30 सितंबर तक चुनाव कराने की बात की गई थी।
महेश ने बताया कि छात्र संघ छात्रों की आवाज़ उठाने का एक महत्वपूर्ण मंच है, जिसने अतीत में उत्तराखंड राज्य आंदोलन, नशा नहीं, रोजगार दो और महिला हिंसा के खिलाफ कई संघर्ष किए हैं। उन्होंने कहा कि लोकतांत्रिक देश में चुनावों की प्रक्रिया स्वस्थ परंपरा है।
पछास महासचिव ने आरोप लगाया कि सरकार ने छात्र संघ चुनाव को धनबल, बाहुबल, जातिवाद, और भ्रष्टाचार जैसी समस्याओं से बचाने के लिए कभी भी लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों को पूरी तरह से लागू नहीं किया। उन्होंने कहा कि हर वर्ष वार्षिक कलेण्डर जारी करने के बावजूद, चुनावी प्रक्रिया को रोकने के लिए सरकार ने एक पुराने शासनादेश का सहारा लिया है।
महेश ने भाजपा की डबल इंजन की मोदी-धामी सरकार पर आरोप लगाया कि यह सरकार चुनी हुई संस्थाओं को नकारने और छात्र संघ के अस्तित्व को खत्म करने की साजिश कर रही है। उन्होंने सरकार के तानाशाही रवैये का विरोध करते हुए कहा कि पहले लिंगदोह कमेटी के माध्यम से छात्र संघ को कमजोर किया गया और अब चुनाव न कराकर उनके अस्तित्व को मिटाने की कोशिश की जा रही है।
पछास ने इस मामले में अपने विरोध की आवाज उठाते हुए भविष्य में सरकार द्वारा छात्र संघों के अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष जारी रखने का संकल्प लिया है।