आरटीआई : 600 करोड़ के चावल घोटाला मामले में विशेष आयोग से जांच कराने की मांग

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हल्द्वानी। उतराखण्ड लेखा परीक्षा अधिनियम 12 को दिवंगत कांग्रेस नेत्री इन्दिरा हृदयेश के राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि बताते हुए रिटायर्ड असिस्टेंट आडिट आफिसर रमेश चन्द्र पाण्डे ने आरोप लगाया है कि राज्य में एक्ट का पूरी तरह से पालन नहीं होने के कारण जहां आडिट की उपयोगिता पर सवाल उठ रहे है वहीं भ्रष्टाचार उजागर करने वालों के हौसले पस्त और भ्रष्टाचार करने वालों के हौसले बुलन्द हैं।

उन्होंने विधायक सुमित हृदयेश को पत्र भेजकर इस मामले को जनहित में विधान सभा में उठाने का आग्रह किया है । आर.टी.आई. एक्टिविस्ट रिटायर्ड असिस्टेंट आडिट आफिसर रमेश चन्द्र पाण्डे ने उक्त मामले में लोक सूचना अधिकार अधिनियम के तहत प्राप्त सूचनाओं के आधार पर विधायक सुमित हृदयेश को 4 पन्नो का विस्तृत पत्र भेजा है ।

पत्र में कहा गया है कि आडिट एक्ट की धारा 8(3) में निदेशक के स्तर से हर वर्ष की वार्षिक आडिट रिपोर्ट तैयार कर उसे सदन के पटल पर रखने हेतु सरकार को भेजे जाने का प्रावधान है । इस प्रावधान के विपरीत वर्षवार रिपोर्ट सदन में पुटअप नहीं की जा रही हैं। इस बारे में आरटीआई से प्राप्त सूचना को मीडिया के जरिये उजागर किया गया और मीडिया में जीरो टॉलरेंस को लेकर सवाल उठे तो सरकार ने गत वर्ष 2014-15 से 2021-22 तक 8 सालों की वार्षिक आडिट रिपोर्ट एक साथ सदन में पुटअप की लेकिन वर्षवार पुटअप नहीं किये जाने के लिए जवाबदेही के सवाल को लेकर हर स्तर से चुप्पी रही। अब फिर से वर्ष 2022-23 एवं 2023-24 की 2 सालों की रिपोर्ट अभी तक सदन में पुटअप नहीं हुई है ।

एक्ट की धारा 9 में आडिट कार्य पूरा होने के बाद आडिट प्रस्तरों के निस्तारण हेतु व्यवस्था दी गई है। आडिट प्रकोष्ठ की ओर से मुख्य सचिव के हस्ताक्षर से 7 अक्टूबर 2016 को जारी कार्यालय ज्ञाप द्वारा एक्ट की धारा 9 की उपधारा 5 (ख) के तहत आडिट प्रस्तरों के निस्तारण के लिए विभागीय लेखा परीक्षा उप समिति, विभागीय लेखा परीक्षा समिति एवं राज्य स्तरीय सम्परीक्षा समिति का पुनर्गठन किया गया है। विभागवार गठित इन उप समिति एवं समितियों की बैठके हर त्रैमास में अनिवार्य रूप से होनी है । श्री पाण्डे ने आरोप लगाया है कि इन समितियों की बैठके नियमित रुप से नहीं हो रही हैं जिससे सालों से बड़ी संख्या में आडिट प्रस्तरों का निस्तारण लटका है ।

इसका उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया है कि उधमसिंहनगर में वर्ष 2015-16 एवं 2016-17 की चावल संचरण में अनियमितता की जांच पहले एस.आई.टी से करायी गई। जिलाधिकारी उधमसिंहनगर ने 27 सितम्बर 2017 को एस.आई. टी. की यह रिपोर्ट शासन को भेजी । रिपोर्ट मे कहा गया कि प्रकरण में अभिलेखों की कूटरचना का व दो वर्ष में लगभग 600 करोड की शासकीय धनराशि के अपव्यय का आर्थिक अपराध व्यापक स्तर पर होना परिलक्षित हुआ है । सीमित समय में समिति स्तर से समस्त प्रकरणों की जांच एवं साक्ष्य का संकलन कर पाना सम्भव नहीं है । एस.आई.टी द्वारा रिपोर्ट के अन्त में स्पष्ट संस्तुति दी गई है कि संकलित तथ्यों एवं साक्ष्यों के आधार पर किसी प्रकार की दण्डात्मक कार्यवाही से पूर्व सम्पूर्ण प्रकरण की जांच किसी विशेष आयोग या आर्थिक अपराध अनुसंधान शाखा या संस्था से कराया जाना उचित होगा ।

इसके बाद शासन द्वारा 23 अक्टूबर 2017 को इस प्रकरण का स्पेशल आडिट कराने के आदेश दिये । आडिट टीम द्वारा 31 मई 2018 को आडिट समाप्त किया गया । शासन द्वारा 3 जून 2020 को जारी स्पेशल आडिट रिपोर्ट में भी एस.आई.टी द्वारा आगणित 600 करोड के शासकीय धनराशि के अपव्यय की पुष्टि हुई।

आरटीआई से प्राप्त सूचना के अनुसार खाद्य विभाग द्वारा स्पेशल आडिट रिपोर्ट की परिपालन आख्या तो आडिट निदेशालय को भेज दी है लेकिन आख्या आडिट एक्ट की धारा 9 के अनुरुप नहीं होने के कारण वित्त विभाग द्वारा लौटा दी है । अपेक्षा की गई है कि विभागीय लेखा परीक्षा उप समिति एवं समिति की बैठक के कार्यवृत एवं संस्तुति के साथ परिपालन आख्या को प्रमुख सचिव खाद्य के माध्यम से भेजा जाय।

श्री पाण्डे ने कहा कि इस पूरे मामले में सबसे हैरतअंगेज पहलु यह है कि एस.आई.टी. की संस्तुति के अनुसार प्रकरण की जांच किसी विशेष आयोग या आर्थिक अपराध अनुसंधान शाखा या संस्था से क्यों नहीं कराई गयी।

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