हल्द्वानी : मित्रता का कोई धर्म नहीं होता_ मित्रता दिवस पर कुछ खास..

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(सैफ अली सिद्दीकी)

हल्द्वानी। मित्रता हमेशा एक तरफ से नहीं बल्कि दोनों तरफ से होती है तब मित्रता आगे तक चलती है। यदि मित्र सुख में साथ ना दे तो चलेगा किंतु यदि मित्र दुख में साथ दें तो वही सच्चा मित्र है। एक बात सदैव याद रखिए कभी मित्रता का कोई धर्म नहीं होता। आज है अन्तरराष्ट्रीय मित्रता दिवस या फ़्रेण्डशिप डे प्रत्येक वर्ष अगस्त के प्रथम रविवार को मनाया जाता है। सर्वप्रथम मित्रता दिवस 1958 को आयोजित किया गया था

मित्रता दिवस दोस्ती मनाने के लिए एक खास दिन है। यह दिन कई दक्षिण अमेरिकी देशों में बहुत लोकप्रिय उत्सव हो गया था। जबसे पहली बार 1958 में पराग्वे में इसे ‘अन्तरराष्ट्रीय मैत्री दिवस’ के रूप में मनाया गया था। आरम्भ में ग्रीटिंग कार्ड उद्योग द्वारा इसे काफी प्रमोट किया गया, बाद में सोशल नेटवर्किंग साइट्स के द्वारा और इंटरनेट के प्रसार के साथ साथ इसका प्रचलन, विशेष रूप से भारत, बांग्लादेश और मलेशिया में फैल गया। इण्टरनेट और सेल फोन जैसे डिजिटल संचार के साधनों ने इस परम्परा को को लोकप्रिय बनाने में बहुत सहायता की।

अंतर्राष्ट्रीय मित्रता दिवस का विचार पहली बार 20 जुलाई 1958 को डॉ रामन आर्टिमियो ब्रैको द्वारा प्रस्तावित किया गया था | दोस्तों की इस बैठक में से, वर्ल्ड मैत्री क्रूसेड का जन्म हुआ था। द वर्ल्ड मैत्री क्रूसेड एक ऐसी नींव है जो जाति, रंग या धर्म के बावजूद सभी मनुष्यों के बीच दोस्ती और फैलोशिप को बढ़ावा देती है। तब से, 30 जुलाई को हर साल पराग्वे में मैत्री दिवस के रूप में ईमानदारी से मनाया जाता है। और इसे कई अन्य देशों द्वारा भी अपनाया गया है। आजकल व्हाट्सएप, फ़ेसबुक जैसे सोशल मीडिया के कारण से ये और प्रसिद्ध हो रहा है।

अंकित कुमार और सादिक सिद्दीकी की दोस्ती सबसे बड़ा उदाहरण है यह दोनों मित्र बहुत ही आपस में समन्वय रखते हुए चलते हैं। इन दोनों का कहना है की मित्रता का कोई धर्म नहीं होता है।

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