जसपुर : आज़ादी को हमे अपने ख़ून की तरह समझना चाहिए : मुफ्ती हसीनुद्दीन

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सैफ अली सिद्दीकी

15 अगस्त 1947 का दिन भारत के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखा हुआ है। इस दिन भारत ने ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता हासिल की और पहली बार दुनिया ने भारत को एक देश में मान्यता दी। स्वतंत्रता दिवस केवल एक ऐतिहासिक घटना नहीं है, बल्कि यह हमें हमारे स्वतंत्रता सेनानियों की बलिदान की भी याद दिलाने वाला दिन है और यह हमें देश की एकता और अखंडता की दिशा में प्रयास करके एकजुट रहने की प्रेरणा भी देता है।

आज 78 वीं स्वतंत्रता दिवस की वर्षगांठ पर जसपुर नई बस्ती बिजली घर स्थित जामिया रहमानिया एजुकेशनल वेलफेयर सोसाइटी द्वारा संचालित मदरसा अल जामिया तुल इस्लामिया मजाहिर उलूम रेहमानिया के तालीम हासिल करने वाले बच्चों ने रैली निकाली। रैली मदरसा स्थल से निकलने के बाद डहरिया, डाक बंगला, पतरामपुर रोड नई बस्ती बिजली घर होते हुए फिर दोबारा नई बस्ती बिजली घर स्थित मदरसे में पहुंची।

इस अवसर पर मदरसे के जनरल सेक्रेटरी मुफ्ती मुहम्मद हसीनुद्दीन मजाहिरी ने कहा कि इस रैली निकलने का मकसद बच्चों को यह बताना है। जैसे किसी इंसान के शरीर (बॉडी) में खून की कमी हो जाए तो वह जिस्म(शरीर) बेजान हो जाता है। ऐसे ही हमारे खून (ब्लड) से ज्यादा हमारे वतन के लिए आजादी को समझना चाहिए।

उन्होंने कहा कि वतन के लिए हमारे आकाबीर हमारे उलमाओं ने अपनी जान कुर्बान की है। सभी धर्मो (बिरादरियों) ने जान कुर्बान की है। तमाम धर्मो हिंदू, मुस्लिम, सिख और इसाई के लोगों को जेलों में डाला गया। कई तरीके से तमाम धर्मों के लोगों को प्रताड़ित किया गया। फिर भी उन लोगों की आजादी की उम्मीद खत्म नहीं हुई। और देश आजाद हुआ।

इस दौरान मदरसे के प्रबंधक (अध्यक्ष) मौलाना अत्ताउर्रेहमान रहमान कासमी ने कहा कि मदरसे के तालीम (शिक्षा) हासिल करने वाले बच्चों की रैली निकालने का मकसद यह है कि बच्चों को आजादी की तारीख के बारे में बताना और कैसे देश की आजादी में तमाम धर्मों (बिरादरियों) ने एक साथ मिलकर देश को आजाद कराने में अपने प्राणों की आहुति दी। उन्होंने कहा कि हमारे मदरसे में लगभग 100 बच्चे दीनी मजहब के साथ-साथ हिंदी, अंग्रेजी, गणित, उर्दू, अरबी, सिलाई-कढ़ाई ट्रेनिंग और कंप्यूटर की भी तालीम हासिल कर रहे हैं।

इस दौरान मदरसे के प्रबंधक(अध्यक्ष) मौलाना अत्ताउर्रेहमान रहमान कासमी, जनरल सेक्रेटरी मुफ्ती मुहम्मद हसीनुद्दीन मजाहिरी, मौलाना इकबाल, शहरीन, नगमा, ज़ैबा, फिज़ा, मोहम्मद अय्यूब आदि लोग मौजूद रहे।

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