उत्तराखंड में गेहूं खरीदी का अभियान फेल, सरकार एक भी बोरी नहीं खरीद सकी

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हल्द्वानी। उत्तराखंड में वर्ष 2025 के गेहूं खरीद अभियान में सरकार की ओर से तय किए गए लक्ष्य के विपरीत, प्रदेश में एक भी बोरी गेहूं की खरीद नहीं हो सकी है। रीजनल फूड कंट्रोलर के अनुसार, सरकार ने इस बार 50 हजार मीट्रिक टन गेहूं खरीदने का लक्ष्य रखा था, लेकिन प्रदेशभर के 195 सरकारी खरीद केंद्र खाली पड़े रह गए हैं।

खरीद विफलता का मुख्य कारण किसानों का खुले बाजार की ओर रुझान बताया जा रहा है। सरकार ने गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य (डैच्) 2425 रुपये प्रति क्विंटल निर्धारित किया था, जबकि किसान खुले बाजार में 2700 से 2800 रुपये प्रति क्विंटल पर गेहूं बेच रहे हैं। इससे किसानों का सरकारी खरीद केंद्रों से मोहभंग हो गया है।

खाद्य निगम और सरकारी एजेंसियों ने कुमाऊं और गढ़वाल क्षेत्रों में खरीद केंद्रों की स्थापना के लिए करोड़ों रुपये खर्च किए और कई कर्मचारियों को तैनात किया, लेकिन उनके प्रयास बेकार साबित हुए। सरकारी गोदामों में एक भी बोरी गेहूं नहीं पहुंची है, जिसके कारण अब राज्य को पूरी तरह से भारतीय खाद्य निगम पर निर्भर रहना पड़ेगा।

किसानों का कहना है कि सरकारी केंद्रों से दूरी बनाए रखने का कारण लंबी लाइनों और भुगतान में देरी है। उन्हें निजी व्यापारियों से तत्काल नकद भुगतान मिल जाता है, जबकि सरकारी खरीद में कई सप्ताह का समय लग जाता है।

इस मामले पर उत्तराखंड की खाद्य मंत्री रेखा आर्य ने कहा, “सरकार ने गेहूं खरीद के लिए हर संभव प्रयास किया। समर्थन मूल्य के साथ प्रति क्विंटल 100 रुपये की प्रोत्साहन राशि भी दी गई है। यदि किसान खुले बाजार में ज्यादा मूल्य पा रहे हैं, तो वे वहीं बेचें। हमारा उद्देश्य किसानों की आय बढ़ाना है।”

सरकार की इस खरीद विफलता से सरकारी भंडारण भी खाली पड़ा है, जिससे प्रदेश को अब केवल भारतीय खाद्य निगम पर निर्भर रहना पड़ेगा। विशेषज्ञों का मानना है कि बिना डिजिटल, पारदर्शी और त्वरित भुगतान प्रणाली के, किसान निजी मंडियों को तरजीह देते रहेंगे, जिससे खाद्य सुरक्षा की दिशा में चिंता जताई जा रही है।

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