हल्द्वानी। उत्तराखण्ड कार्मिक एकता मंच ने कहा कि उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन के चिन्हित आन्दोलनकारियों तथा उनके आश्रितों को राजकीय सेवा में आरक्षण विधेयक 2023 में दिया गया “उद्देश्य और कारणों का कथन” सवालों से घिरा है ।
शहीदों के सपने को साकार करने के मूल उद्देश्य से विचार मंच के रुप में गठित उत्तराखण्ड कार्मिक एकता मंच के संस्थापक संयोजक रमेश चन्द्र पाण्डे ने कहा कि विधेयक के उद्देश्य और कारणों के कथन में उल्लेख किया गया है कि राज्य निर्माण के आन्दोलन में “स्थानीय जनता” द्वारा एक बृहद आन्दोलन किया गया था। इससे स्पष्ट है कि आन्दोलनकारी के रुप में चिन्हीकरण समूची स्थानीय जनता का होना चाहिए।
राज्य प्राप्ति के आन्दोलन में अपनी कुर्सी को दांव में लगाकर 94 दिन तक लगातार सड़क में संघर्ष करने वाले कार्मिक समुदाय की भूमिका का, विधेयक में जिक्र तक नहीं किया गया है जो दुर्भाग्यपूर्ण है और विधेयक के निर्विवाद होने पर सवाल खड़ा करता है। जबकि वास्तविकता यह है कि आन्दोलन की मुख्य धारा से जनता के पीछे हट जाने के बावजूद समुचा कार्मिक समुदाय आखिर तक आन्दोलन की अग्रणी भूमिका में डटा रहा।
कहा कि राज्य आन्दोलन में उत्तराखण्डवासियों के सामूहिक संघर्ष के साथ ही शहीदों की शहादत और कार्मिकों की बगावत से सबका ध्यान इस आन्दोलन की ओर आकर्षित हुआ।
राजकीय कोषागार सहित समस्त कार्यालयों मे तीन माह तक ताले लटके रहे जो राज्य निर्माण के आन्दोलन में कार्मिको की भागीदारी के प्रमाण हैं ।
उन्होंने क्षैतिज आरक्षण को लेकर उठे सवालों और विवाद के लिए चिन्हीकरण की प्रक्रिया को जिम्मेदार ठहराते हुए इस पर पूर्ण विराम लगाने के लिए चिन्हीकरण के लिए सर्वमान्य मानक तय किये जाने की जरुरत पर बल दिया।
उन्होंने कहा कि राज्य निर्माण के लिए हुए जन आंदोलन में भाग लेने वाले कार्मिको और शिक्षको के साथ ही आन्दोलन की कवरेज करने वाले पत्रकारों को भी राज्य आन्दोलनकारी के रुप में चिन्हित किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि आवाज दो हम एक हैं के जिस नारे की ताकत के बल पर हमने राज्य हासिल किया। उत्तराखण्ड का गठन होने के बाद वह नारा धरातल से विलुप्त हो गया। “आवाज दो हम एक हैं” के नारे को ही शहीदों का मूल सपना बताते हुए उन्होंने कहा कि राज्य के मौजूदा हलातों में जवाबदेही तय कराने के लिए शहीदों के सपने को धरातल पर साकार करने की जरुरत है ।
गौरतलब है कि उक्त विधेयक 8 सितम्बर 2023 को प्रवर समिति को निर्दिष्ट किया गया था। संसदीय कार्य एवं वित्त मंत्री प्रेम चन्द्र अग्रवाल इस समिति के सभापति थे और विधानसभा सदस्य मुन्ना सिंह चौहान, विनोद चमोली, उमेश शर्मा ‘काऊ’ शहजाद, मनोज तिवारी, और भुवन चन्द्र कापड़ी इस समिति के सदस्य थे। प्रवर समिति के प्रतिवेदन को 6 फरवरी 2024 को विधान सभा में प्रस्तुत किया गया।
विधेयक के उद्देश्य और कारणों का कथन में कहा गया है कि “उत्तराखण्ड राज्य निर्माण के लिए उत्तराखण्ड की स्थानीय जनता द्वारा एक बृहद आन्दोलन किया गया था। जिसमें अनेक लोगों द्वारा अपने प्राणों की आहुति दी गयी। और भाँति भाँति की यातनाएं सही गयी । उक्त आन्दोलन में भाग लेने वाले व्यक्ति चिन्हित वर्गीकृत हैं । आन्दोलनकारियों के ऐसे वर्ग को उनके द्वारा दिये गये बलिदान को ध्यान में रखते हुए सम्मान दिया जाना और लोक सेवाओं में ऐसे आन्दोलनकारियों का प्रतिनिधित्व लिया जाना समीचीन है।
उच्चतम न्यायालय की इन्दिरा साहनी बनाम भारत सरकार AIR 1993 SC 477 नामक निर्णयज विधि , जिसमें अवधारित किया गया है कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के अतिरिक्त सामाजिक और शैक्षणिक रुप से अन्य पिछड़े वर्गो (यथा किया जा सकता है, के दृष्टिगत उत्तराखण्ड के राज्य आन्दोलन के आन्दोलनकारियों या उनके आश्रितों को राजकीय सेवा में 10 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण प्रदान किये जाने के लिए विधेयक लाया जाना प्रस्तावित है।”
कहा गया है कि प्रस्तावित विधेयक उक्त उद्देश्य की पूर्ति करता है। गवर्नर के हस्ताक्षर के बाद 18 अगस्त 2024 को क्षैतिज आरक्षण की अधिसूचना भी जारी हो गई।
सवाल यह भी उठ रहा है कि बाढ पीड़ित, चक्रवात पीड़ित, अग्नि पीड़ित, युद्ध पीड़ित, दंगा पीड़ित में से आखिर राज्य आन्दोलनकारियों को किस श्रेणी का माना गया है ?