उत्तराखंड में चल रहे 38वें राष्ट्रीय खेलों में खिलाड़ियों ने अपनी शानदार प्रदर्शन से राज्य का मान बढ़ाया और वहीं पूरे प्रदेश में नेशनल गेम्स ने एक नई रौनक और चमक बिखेर दी है। जहां एक ओर उत्तराखंड के खिलाड़ियों अपने प्रदर्शन से राज्य का नाम रोशन कर रहे हैं, वहीं दूसरे राज्यों के खिलाड़ियों ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
इस बीच, राष्ट्रीय खेलों में एक ऐसा नाम उभरकर सामने आया है, जो अपनी संघर्ष की कहानी से प्रेरणा देता है—गोल्डन ब्वॉय तेजस शिरसे। महाराष्ट्र के इस खिलाड़ी ने राष्ट्रीय खेलों में गोल्ड की हैट्रिक लगाई है, जो उनके लिए एक बड़ी उपलब्धि है, खासकर तब जब यह खिलाड़ी बिना किसी सुविधा के अपने दम पर यह मुकाम हासिल कर चुका है।
तेजस शिरसे ने अपनी खेल यात्रा की शुरुआत एक बहुत ही साधारण स्थिति से की थी। किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले तेजस ने 17 साल की उम्र में पहली बार बाधा दौड़ के बारे में सुना। हालांकि, उनके शहर में न तो कोई कोचिंग थी, न ही मैदान था और न ही स्पाइक्स (जूते) थे। लेकिन आर्थिक स्थिति से जूझते हुए उन्होंने उधार के पैसों से स्पाइक्स खरीदी और घर के पास के एक छोटे से मैदान में खुद से अभ्यास करना शुरू कर दिया। महीनों की मेहनत के बाद राज्य स्तर की प्रतियोगिताओं में भाग लिया और सफलता हासिल की, जो आगे चलकर राष्ट्रीय खेलों तक पहुंची।
राष्ट्रीय खेलों में रविवार को तेजस ने 110 मीटर बाधा दौड़ में 13.65 सेकेंड के समय के साथ अपना ही राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़ते हुए स्वर्ण पदक जीता। यह उनका तीसरा गोल्ड था, इससे पहले गुजरात और गोवा में हुए राष्ट्रीय खेलों में भी उन्होंने गोल्ड मेडल जीते थे। तेजस का राष्ट्रीय रिकॉर्ड अब 13.41 सेकेंड है, जो उन्होंने पिछले साल तय किया था।
तेजस ने बताया कि अब उनका लक्ष्य अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतना है। उन्होंने अपनी कड़ी मेहनत, संघर्ष और समर्पण से साबित कर दिया कि परिस्थितियां चाहे जैसी भी हों, यदि संघर्ष और जुनून सच्चा हो, तो कोई भी लक्ष्य हासिल किया जा सकता है। तेजस की सफलता न केवल एक खिलाड़ी के लिए प्रेरणादायक है, बल्कि यह हर किसी को यह सिखाती है कि मुश्किलों का सामना करते हुए भी लक्ष्य की ओर बढ़ते रहना चाहिए।
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