Exclusive : 124 पुस्तकों का अध्ययन कर 24 साल में हल्द्वानी पर लिखी किताब

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हल्द्वानी बनभूलपुरा लाइन नंबर 12 के रहने वाले इतिहासकार और श्रम  न्यायालय हल्द्वानी में प्रेक्टिस करने वाले निसार अहमद अंसारी ने अपनी 24 साल की कड़ी मेहनत के बाद हल्द्वानी की मुख्तशर तारीख और मुस्लिमो के ओकाफ नामक पुस्तक लिखी है। जिसका मतलब है कि हल्द्वानी और मुस्लिमो का संक्षिप्त इतिहास। वैसे तो निसार अहमद ने अपनी पहली पुस्तक बाहरिस्तान-ए-मजामीन लिखी थी। तो आईए जानते निसार अहमद अंसारी की दूसरी पुस्तक हल्द्वानी की मुख्तशर तारीख और मुस्लिमो के ओकाफ़ पर हमारे *संवाददाता सैफ अली सिद्दीकी की रिपोर्ट में…*

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हल्द्वानी। हजारों साल में नर्गिस अपनी बेनूरी पर रोती है, बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा। यह कहना है हल्द्वानी वनभूलपूरा लाइन नंबर 12 के रहने वाले इतिहासकार और श्रम न्यायालय हल्द्वानी में प्रेक्टिस करने वाले  निसार अहमद अंसारी का जिन्होंने 24 साल की कड़ी मेहनत से हल्द्वानी की तारीख और मुस्लिमो के औकाफ पर पुस्तक लिखी है।

निसार अहमद एक गरीब परिवार से आते है। उन्होंने बताया कि हल्द्वानी के इतिहास में कोई भी ऐसी पुस्तक नहीं थी। जो हल्द्वानी की तारीख़ बता सके। और न ही कोई ऐसी पुस्तक थी। जिसमे खासतौर से धार्मिक स्थलों और मुस्लिम औकाफ़ का हवाला मिल सके। उन्होंने बताया कि इस पुस्तक को लिखने के लिए उन्होंने कारी गुलाम मोइनुद्दीन रहमतुल्ला अलेह० से मशवरा किया। फिर उन्होंने बताया कि इस पुस्तक को लिखने में उन्होंने अपने दादा वली मोहम्मद और ओम प्रकाश आर्य की मदद ली। निसार अहमद ने बताया इस पुस्तक को लिखने की शुरुआत उन्होंने सन 2000 से की थी।

उन्होंने आगे बताया कि इस पुस्तक को लिखने में उन्होंने 124 पुस्तकों का अध्ययन किया। जिसमे  हिंदू, मुस्लिम, सिख और ईसाई धर्म की पुस्तके भी शामिल है। उन्होंने और जानकारी देते हुए बताया की कुछ लोगों का कहना है कि हल्द्वानी 1834 में बसी है और किन्ही लोगों का कहना है की 1361 में बसी है। उन्होंने बताया कि उनके अध्ययन और रिसर्च के मुताबिक हल्द्वानी में सन 805 में भी आबादी थी। और जब सनातन धर्म के शंकराचार्य हल्द्वानी आए थे तो वह भी इसी रास्ते से अपने धर्म का प्रचार करते हुए बद्रीनाथ गए थे। जब चीनी यात्री हांगसोंग भी सेनापानी से चला तो हल्द्वानी के ही रास्ते काशीपुर(गोवीशार) पहुंचा था। निसार अहमद ने बताया कि मोहम्मद बिन कासिम जो मुस्लिम जंगजु थे। उन्होंने जब हिंदुस्तान पर हमला किया था तो उन्हीं के मुबल्लिग सय्यद कमालुद्दीन इस्लाम का प्रचार करने भी हल्द्वानी आए थे। सय्यद कमालुद्दीन ने भी कालाढूंगी रोड पर इबादत की थी। और वह हल्द्वानी से रानीखेत जाकर रहने लगे थे।

निसार अहमद ने आगे बताया कि उनकी पुस्तक में विशेष रूप जो आज की पीढ़ी को जानकारी देनी थी। वह यह है की जंगे आजादी हल्द्वानी में रहने वाले 114 पठानों ने अपने प्राणों की आहुति दी थी। जो और पुस्तकों में यह जानकारी नहीं मिलती है।

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